भूमिगत कोयला खदानें हमेशा से पुरुषों के वर्चस्व वाली दुनिया मानी जाती रही हैं, जहां घुप्प अंधेरा, दमघोंटू हवा और जानलेवा जोखिम हर दिन के काम का हिस्सा है। कुछ साल पहले तक किसी ने सोचा भी नहीं था कि कोई महिला इन अंधेरे, जोखिम भरे सुरंगों में उतरकर काम कर सकती है। लेकिन हजारीबाग जिले के बड़कागांव की आकांक्षा कुमारी ने इस मिथक को तोड़ दिया। वे देश की पहली महिला अंडरग्राउंड कोल माइन इंजीनियर बनीं।
चार साल पहले उन्होंने सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड के एनके एरिया की चूरी भूमिगत खदान में बतौर अंडरग्राउंड माइन इंजीनियर उन्होंने करियर की शुरुआत की। वहां उनकी ज़िम्मेदारी है-पिलर डिज़ाइन तैयार करना, संरचनाओं की स्थिरता सुनिश्चित करना और सुरक्षा मानकों की निगरानी करना।
बचपन से ही खदानों को लेकर उनका कौतूहल गहरा था। घर की छत से उठता कोयले का धुआं देखकर वे अक्सर पिता से पूछ बैठतीं—“पापा, अंदर कैसा होता होगा?” पिता का जवाब हमेशा एक जैसा होता—“खतरनाक, अंधेरा और कठिन।” वही कठिनाई उनके लिए चुनौती और प्रेरणा बन गई। तभी ठान लिया कि एक दिन इस रहस्यमयी अंधेरे को अपनी आंखों से देखेंगी।
आकांक्षा के पिता अशोक कुमार शिक्षक हैं और मां मालती देवी गृहिणी। जब उन्होंने माइनिंग इंजीनियरिंग पढ़ने का निर्णय लिया, तो रिश्तेदारों ने सवाल उठाए-“ये लड़कियों के बस की बात नहीं।” लेकिन पिता ने उनकी आंखों में चमक देखकर कहा-“निर्णय तुम्हारा, साहस भी तुम्हारा।” यही भरोसा उनकी सबसे बड़ी ताकत बना।
नवोदय विद्यालय से पढ़ाई और बीआईटी सिंदरी से माइनिंग इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद आकांक्षा ने 2018 में हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, उदयपुर से करियर शुरू किया। वहां दो साल ड्रिलिंग सेक्शन में काम कर खदानों की बारीकियां सीखीं। लेकिन उनका सपना था कोल इंडिया जैसी बड़ी चुनौती का हिस्सा बनने का, और उन्होंने उसे सच कर दिखाया।
भूमिगत खदानों में हमेशा गैस रिसाव, आग लगने या चट्टान टूटने का खतरा रहता है। लेकिन आकांक्षा का नजरिया स्पष्ट है—“हर नौकरी में रिस्क है, फर्क बस इतना है कि यहां अंधेरा ज़्यादा है। टेक्नोलॉजी ने हमारे काम को आसान बना दिया है, और आने वाले समय में खतरे और भी कम होंगे।”
आकांक्षा आज केवल इंजीनियर नहीं, बल्कि महिला सशक्तीकरण की प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं। उनकी उपलब्धियों की सराहना कोयला एवं खान मंत्री प्रह्लाद जोशी से लेकर झारखंड सरकार तक ने की है। कई संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया है। मगर उनके लिए असली सम्मान तब होता है, जब कोई लड़की आकर कहती है—“दीदी, मैं भी खदान इंजीनियर बनना चाहती हूं।”
आकांक्षा की यात्रा इस बात की गवाही है कि जब सपनों के साथ साहस जुड़ जाए, तो धरती का सबसे घना अंधेरा भी रोशनी की राह दिखा देता है।
